शुक्रवार, 26 जुलाई 2013

तुम्हारा तकिया मैं चुरा न लूँ

बादल जब आकाश से चले जायेंगे
तब तुम
किसी को
याद करोगे

किस तरह उसे तुम सांत्वना दे पाओ

हम अब तभी
मिलेंगे अपनी
मच्छर दानियो से  बाहर
एक दूजे को देनी होगी जब
एक दूसरे के आसपास के
किसी मरण की सूचना

ये ख्याल रखते कि
मेरा तकिया तुम
तुम्हारा तकिया मैं
चुरा न लूँ

ये भी एहतियात बरतना होगा कि
कन्धो पर शव हो
बंदूक
कुछ
 देर को

सही

मंगलवार, 23 जुलाई 2013

रात किसी के तकिये पर था उसे जागना

हथेली पर किसी की
रेखाओं पर
पीपल का पत्ता

जिस पर एक बूँद
ठिठकी
चाँद उसी में
उगना था

रात किसी के तकिये पर
था उसे जागना

रात ही किसी की देह पर
चहल कदमी
थी होनी

किन्ही हथेलियों पर
रखी जानी थी
अज्ञात अदृश्य
हथेलियाँ

जिन्हें फिर
अपने अपने चेहरों
पर रख लेनी थी

तलवार की धार पर सपनो  को
था आना 

सोमवार, 22 जुलाई 2013

बिस्तर पर किसी के डूब मरने की छपाक

आईने को देखता
देखता हूँ
उस से लिपट गया

मेरा मौन
झील सा नही
चट्टान सा
हो

जिसमे मैं
जीवाश्म सा
पाया
जाऊँ

अभी तुम्हारे
द्वार पर मेरी छाया
ताजा टूटे
पत्ते सी

और बिस्तर पर किसी के डूब मरने की छपाक


गुरुवार, 18 जुलाई 2013

उसकी आवाज कोई उतरी हुई केंचुली हो

अभी जब चाँद  को काला बिल्ला आधा नोच गया
उसी दरम्यान किसी ने सूनी गली में अपने घर का दरवाजा खोला और अंधी आँखों से देखते कहा
किससे  मिलना है
कौन हो
कहाँ से आए हो
क्यों आए हो
किसने भेजा

उसी वक्त किसी दूसरी गली की बंद खिड़की से किसी ने
किसी का चेहरा
फेंका

उसी वक्त किसी की छाती पर
टिका चेहरा
गीली राख
में तब्दील हुआ

सैकड़ो टूटे तारो का हुजूम उस छाती में से गुजर गया किसी ने रोका नही

किसी के बालो में ढका चेहरा
तब देख रहा था
अन्धेरा कितना चमकीला और सुकून देता है

बरसो पुरानी दीवार के बिखरते चेहरे पर तब दो साए अपने हाथ यूं रखते है जैसे वे पक्षी हो
और इस दीवार को अपनी उड़ान में
ले उड़ेंगे

सीढ़ियों पर उन सायो का राग था

तब फिर किसी ने यूं पूछा जैसे उसकी आवाज कोई  उतरी हुई केंचुली हो

किससे  मिलना है
क्यो…
कौन
तुम

चाँद अपना नुचा हुआ चेहरा लिए मेरी आँखों में झाँक रहा
या
मै
उसकी 

बुधवार, 17 जुलाई 2013

दिल का सूर्य डूब रहा

रात अपना सर उठा रही है और दिल का सूर्य डूब रहा
ठंडे अंगारे ठिठुरते कनपटियो में धंस रहे

कोइ पदचाप नही


विलाप
में
कोई
घुट
रहा

मौसम
की
उमस
हमारी
देह
के
स्पंदन
को
खा
रही

कल जो सूर्य  उगेगा
लुटा
पिटा,
अंधा,
वृद्ध

वह समस्त हरीतिमा पर नीली आँखों का पथराया स्वप्न  होगा

रविवार, 14 जुलाई 2013

शव का एकांत हूँ

मृत फोन पर सूखा बादल बरसता और बरसो पहले की सिसकी हरी हो जाती
जामुनी इन्तजार में नीले का स्फटिक बदन हवा में कसमसाता

तब एक मोर किसी सूने घर की छत पर अपने सारे पंख त्याग देता ऒर अपने पैरों को चबाता

अन्धेरे कमरे में
किसी की  कोहनी पर
बेसुध लेटा  मैं
सपने में
उसके
कान में
सपने
का
भेद
फूंकता

अभी कोई तारा नही टूट रहा
अभी
आकाश
टूट
बिखर रहा

अभी आईने में
कोई छाया
मेरा आलिंगन करती
सिसक रही

अभी गुमनामी की रेत में
मेरी बदहवासी को
नमी का छल
चबा रहा

कहाँ हो तुम
यह कहने में कहाँ हूँ मैं यह देखता शव का एकांत हूँ

शनिवार, 13 जुलाई 2013

चाक पर



हुआ 
लगाव
एक 
कुम्हारन से 
माँ 

बनाती नही 
मिट्टी से 
बरतन 

लेपती 
मुझ पर 

घुमाती 
चाक पर 

बना कैसा 
मैं 
तू बता 

किसी काम का भी रहा 

आज तो 
उसने 
चढा लिया 
खुद को 
चाक पर 

लेप लिया 
मुझे 


रविवार, 7 जुलाई 2013

मेरे मित्र बीयर पीते झाग मेरे बालो पर डालते मेरे कानो को एश ट्रे बना रहे है

मेरी हंसी एक जर्जर दरवाजे की दरार से आती विलाप की घुटी घुटी यात्रा है

मुझे अभी रात छत पर उमस में किसी ने कहा कि तुम बहुत ज्यादा हो जाते हो अब सारी उम्र यूं ही माँ की छाती लगे रहोगे क्या. 

मेमने के मुह से दूध भरा स्तन जैसे कोई जबरन छुड़ाए .

मेरी पसलियों को तोड़ती तुमने कहा अब तुम्हे खुद को ज्यादा खर्च नही करना चाहिए 
मैने देखा मेरे कपड़े या तो बहुत  ज्यादा ढीले किसी अन्य के है या मेरी खाट किसी की चिता है 

मेरी ढोलकी फट चुकी है जिसमे बैठ मुझे ननिहाल जाना था 
मुझे पीटने वाले पिता अभी मेरे उजबक बने रह जाने पर सीली लकडियो में सिसक रहे हैं 

मेरे मित्र बीयर पीते झाग मेरे बालो पर डालते मेरे कानो को एश ट्रे बना रहे है 

मेरे लिखे को मेरी अनपढ़ माँ मेरी सबसे बड़ी पूंजी समझ सड़क पर से बुहारती कुचल  जाती है 

मेरी कटी जीभ में से रक्त की आकाश गंगा फूटती है 

मैं  अपना लिंग परिवर्तन करते  देखता हूँ ईश्वर अपनी जगह से नदारद है .

मेरे घर में मेरी विगत  हंसी और बातो के सूखे कुए हैं जिनमे मेरी गीली परछाई चीखती है 


गुरुवार, 4 जुलाई 2013

बंद कमरे में पड़े हारमोनियम को कबूतरों की चोंच गूंगा कर देती है

हम देह से परे के असीम में रहते हैं  अदृश्य ...पारदर्शी ....वहां भी दुःख की भिनभिनाहट आ ही जाती है .

मेरे कंठ में आंसुओं का बर्फीला गोला तपता है और मेरी आँखों में रेतीले टीले उफनते .

कहीं कोई है जो खाता है मेरे कानो में पहुँचने वाले शब्दों को.
सूनी सडक पर एक शराबी मेरे गले लग फफक पड़ता है
अँधेरे में हरी बेंच के नीचे एक काला पिल्ला लेटा है  जाने कब से जिसे उसकी काली माँ बार बार सूंघ कर तारो की ओर देखती है .
बंद कमरे में  पड़े हारमोनियम को कबूतरों की चोंच गूंगा कर देती है

न तुम मरोगे न वह
क्योंकि
न तुम
ये
हो

वो

हम अपनी अमरता की बात करते देखेंगे हम में से जाने कौन सिसकने लगेगा

आज शाम मेरी मृत्यु में मेरे मृत पिता ने देखा कि वे अधमरे है और मैं मर गया हूँ
आज शाम मेरे रक्त में पड़ी गाँठ कुछ और कस गयी और मेरा दाहिना हाथ सुन्न हो मुझे अजनबी काले मृत पिल्ले सा पथरीली आँखों से देख रहा था .
आज अभी अंधेरी तपती रात में उस सूनी सडक पर सूनी बेंच के नीचे मैं अपनी जीभ काट रहा हूँ
कान ......भी
पुतलियाँ भी मैंने बाहर निकाल दी है
हाथ पैरों के नाखून भी मैंने उतार फेंके है

मेरी देह पर चीलों .....कव्वो ....गिद्धों की छाया का घटाटोप है

किसी की नीद में मैं  टूटी सीढ़ी
अंधी बावड़ी
फूटी हांडी
बिसूरता चूल्हा

आज शाम मेरे पिता और माँ ने कहा कि चलो अनिरुद्ध को भी यहाँ ले आते है
अभी आधी रात को मेरी देह श्मशान में या तुम्हारे कमरे में उड़ने को आतुर है

जो मुझ से नाराज है
उनके तपते ललाट पर मेरे जाने की ठंडी छाया का स्पर्श है

विदा




मंगलवार, 2 जुलाई 2013

दोपहर के वीराने में कोइ आएगा और खुद को चुरा ले जाएगा.

क्या उसे पता है कि उसे क्या पता है?
क्या उसे पता है वह किसका साया है? 
क्या उसे पता है रास्तों में रास्ते खोते है? 
कि प्यास और आस अंतिम कलप है

दोपहर के वीराने में कोइ आएगा और खुद को चुरा ले जाएगा. 

मैंने जब उससे पूछा  तो उसने कहा 'हाँ मुझे पता है!' ये सुनते ही मैने देखा मै कहीं नही था. 
अब हम वहां थे जहां हम कहीं न थे. 

उसने मेरे भीतर अपनी विस्मृत हंसी की रेत पसार दी.
अचानक टीले ने जैसे मेरा भक्षण कर लिया हो मै उसके बिसारने में यूं धंसा.
मेरे होने का कोई  निशान अब वहा न था. 
केवल टीला था.

 जिस पर कभी बैठ कर कोइ विक्रमादित्य बन गया था.
आज मेरा दम घुटता जा रहा था.
कोइ कहीं न था.

सोमवार, 1 जुलाई 2013

मृत चीजे ही दूसरो को मारती है.

जिस टेबल पर मैं झुका था उस टेबल पर मै लेटा था.

हमारे बीच आत्मा किसी चाकू सी .

मृत चीजे ही दूसरो को मारती है.

फिर मैं उठूंगा तो मेरी छाया कतरनों में मेरा गला घोंटने लगेगी.
जिस कागज को घूर रहा हूँ वह मुझे अपना अंधापन देने को आतुर है.

तुम्हारी आवाज अभी सुनाई दी जब बगल के तारे ने बगल के तारे को टूट मुंह के बल गिरते देखा.

स्मृति एक कपाल क्रिया है जिसे विस्मृति प्रतिपल किया करती है.