बुधवार, 16 अक्तूबर 2013

आत्मा का आकाश भी अनाथ था

शाम आज देखा शाम ने

दिन ही नही ढला
देह को छाया
ने भी
एक पल को
बिसार देने का
अहसास कराया

तब

आत्मा का आकाश
भी
अनाथ था

फिर छाया ने देह को
खुद में
समाया

अभी रात है मित्र
जो तुम हो

और रात का कोई साया
शाम नही


शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2013

हिलती रही हरीतिमा अनजान बन

बारिश ने बूंदे नही 

बरसाए 
शब्द 

धरा पर सुना
जड़ो ने 

और मुस्कुरा दी 

हिलती रही 
हरीतिमा अनजान बन 

छाया सी 
चेहरे पर 
तुम्हारे 

गुरुवार, 10 अक्तूबर 2013

उलझी कांटो में परछाई

उलझी कांटो में
परछाई

तब नीले  आसमान
ने खुद को
सफेद पक्षी बना

अपनी छाया का बढ़ा हाथ
उसे बाहर निकाल
परवाज दे दी

अब उस परवाज में
कांटे भी
महक रहे 

मंगलवार, 8 अक्तूबर 2013

पीले पत्ते पर कीड़े सी धूप

पसलियों को रात
अंधेरी नीद के
मुरझाते सपने ने
रिसती चट्टान सा देखा

पुतलियो की जगह
राख के
ढूह

होटों पर ठंडा धुआँ
अंधे
सांप सा

आत्मा जैसा कुछ था
शायद

जहाँ पीले पत्ते पर
कीड़े सी
धूप


हवा में से गुजरा जैसे ईश्वर का साया

इतने दूर होने से
हमने अपना इतना सघन सामीप्य
यूं पाया

हवा में से गुजरा जैसे
ईश्वर का साया

जल में से
साए का ईश्वर

अग्नि में से
अग्नि की शीतलता

तुम्हारे उच्चारण में
मेरी आत्मा निर्बंध

स्मरण ने  स्पर्श की
समस्त हरीतिमा को
फलवती किया

इतना समीप  जैसे
आकाश में
आकाश



सोमवार, 7 अक्तूबर 2013

मुस्काता आंसू हवा को भिगो गया

हवा ने सांझ
हवा से कुछ
कहा

सुन जिसे
मुस्काता आंसू
हवा को
भिगो गया

मैने एक हरा गुलाब लिया
तुम्हारी आवाज के तार
पर बिछा दिया

अभी हवा अपनी बगल में
झांकती
सकुचाती सिसक रही 

रविवार, 6 अक्तूबर 2013

स्मृति एक सिसकी में घुट गयी

झर गया 
हरे पत्ते के साथ 
नीला आसमान 
भी 

तुम्हारे ललाट 
पर जैसे 
मेरा हाथ 

मेरे सर पर 
चेहरा तुम्हारा 

स्मृति एक सिसकी में 
घुट गयी