शाम आज देखा शाम ने
दिन ही नही ढला
देह को छाया
ने भी
एक पल को
बिसार देने का
अहसास कराया
तब
आत्मा का आकाश
भी
अनाथ था
फिर छाया ने देह को
खुद में
समाया
अभी रात है मित्र
जो तुम हो
और रात का कोई साया
शाम नही
दिन ही नही ढला
देह को छाया
ने भी
एक पल को
बिसार देने का
अहसास कराया
तब
आत्मा का आकाश
भी
अनाथ था
फिर छाया ने देह को
खुद में
समाया
अभी रात है मित्र
जो तुम हो
और रात का कोई साया
शाम नही