रात कि परछाई थी जो कल आने का कहती भुरभुरा रही थी
कहे के पसरे खालीपन में मेरा सुनना ठिठुर रहा था
धरती कोई कमरा थी किसी के ठंडे तकिये पर रखी जिसमे एक कमरे में चाय पीते किसी को किसी कि याद के भूत से पीछा छुड़ाने कि शहदीली कोशिश में जीने मरने के पुल से छलांग लगानी थी
अनिद्रा का
स्वप्नरहित
तालाब
तब
जीभ
काट
रोयेगा
रोने के भरेपन में मेरी देह हल्की हो तैरेगी
कहे के पसरे खालीपन में मेरा सुनना ठिठुर रहा था
धरती कोई कमरा थी किसी के ठंडे तकिये पर रखी जिसमे एक कमरे में चाय पीते किसी को किसी कि याद के भूत से पीछा छुड़ाने कि शहदीली कोशिश में जीने मरने के पुल से छलांग लगानी थी
अनिद्रा का
स्वप्नरहित
तालाब
तब
जीभ
काट
रोयेगा
रोने के भरेपन में मेरी देह हल्की हो तैरेगी