आकाश था अपने नीले के पड़ौस में व्यापे सफेद में
जिसमे स्मृति की उड़ान स्मृति सी
कोई पदचाप थी बाद में सीढियों पर जो नीद में सपनों की चट्टानों पर चिड़िया की चीख सी आकाश की छाती को बींधती
इस दृश्य में मैंने पुकारा एक नाम
एक नाम
ठिठुरता कोई आया और उस पुकार को अपने सीने से लगाता
जैसे बुहारता चला गया
एक नाम
आकाश है
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