बुधवार, 16 अक्तूबर 2013

आत्मा का आकाश भी अनाथ था

शाम आज देखा शाम ने

दिन ही नही ढला
देह को छाया
ने भी
एक पल को
बिसार देने का
अहसास कराया

तब

आत्मा का आकाश
भी
अनाथ था

फिर छाया ने देह को
खुद में
समाया

अभी रात है मित्र
जो तुम हो

और रात का कोई साया
शाम नही


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