प्रेषक
अनसुने..अनकहे की छाया में संतप्त कुछ..
रविवार, 6 अक्तूबर 2013
स्मृति एक सिसकी में घुट गयी
झर गया
हरे पत्ते के साथ
नीला आसमान
भी
तुम्हारे ललाट
पर जैसे
मेरा हाथ
मेरे सर पर
चेहरा तुम्हारा
स्मृति एक सिसकी में
घुट गयी
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