प्रेषक
अनसुने..अनकहे की छाया में संतप्त कुछ..
शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2013
हिलती रही हरीतिमा अनजान बन
बारिश ने बूंदे नही
बरसाए
शब्द
धरा पर सुना
जड़ो ने
और मुस्कुरा दी
हिलती रही
हरीतिमा अनजान बन
छाया सी
चेहरे पर
तुम्हारे
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