इतने दूर होने से
हमने अपना इतना सघन सामीप्य
यूं पाया
हवा में से गुजरा जैसे
ईश्वर का साया
जल में से
साए का ईश्वर
अग्नि में से
अग्नि की शीतलता
तुम्हारे उच्चारण में
मेरी आत्मा निर्बंध
स्मरण ने स्पर्श की
समस्त हरीतिमा को
फलवती किया
इतना समीप जैसे
आकाश में
आकाश
हमने अपना इतना सघन सामीप्य
यूं पाया
हवा में से गुजरा जैसे
ईश्वर का साया
जल में से
साए का ईश्वर
अग्नि में से
अग्नि की शीतलता
तुम्हारे उच्चारण में
मेरी आत्मा निर्बंध
स्मरण ने स्पर्श की
समस्त हरीतिमा को
फलवती किया
इतना समीप जैसे
आकाश में
आकाश
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