मंगलवार, 8 अक्तूबर 2013

हवा में से गुजरा जैसे ईश्वर का साया

इतने दूर होने से
हमने अपना इतना सघन सामीप्य
यूं पाया

हवा में से गुजरा जैसे
ईश्वर का साया

जल में से
साए का ईश्वर

अग्नि में से
अग्नि की शीतलता

तुम्हारे उच्चारण में
मेरी आत्मा निर्बंध

स्मरण ने  स्पर्श की
समस्त हरीतिमा को
फलवती किया

इतना समीप  जैसे
आकाश में
आकाश



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