लिखी जाती
विस्मरण में
गुम
पंक्तियाँ
जो लिखा जाना था
नही लिख पाए
कभी
अनुपस्थित का
सूना
हाहाकार
कोई आईना नही
हरी
पत्ती है
जिसमे हमारा चेहरा
पीला पड़ता
निरंतर हूक में सनी
पक्षी की
आवाज
जिसकी छाया नही
विस्मरण में
गुम
पंक्तियाँ
जो लिखा जाना था
नही लिख पाए
कभी
अनुपस्थित का
सूना
हाहाकार
कोई आईना नही
हरी
पत्ती है
जिसमे हमारा चेहरा
पीला पड़ता
निरंतर हूक में सनी
पक्षी की
आवाज
जिसकी छाया नही
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