रविवार, 13 अप्रैल 2014

सूने आँगन पर किसी के सपनों की गर्द पर
एक हूक

आकाश में किसी की पदचाप की छाया से
बच्चे के एलबम में रखा पत्र
सिसकता सिकुड़ जाता

दो हथेलियों के बीच
बावड़ी में जमी काई में
हरा होता चाँद

चोर क़दमों से
आने वाला
चोर न हो याचक
या
विधाता भी हो सकता

कमरे में रखी कुर्सी ने
अपनी छाया में
किसी के स्मरण सी

पीठ पर किसी के भीगे बालों की नमी
पलकों पर

एक पीले पत्ते ने किसी के कंधे पर
खुद को संयुक्त पाया




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