रविवार, 30 जून 2013

मेरे ये शब्द नही चिता पर रखी जानी वाली लकडियाँ है

उसकी आँखे हरे कंचो सी चमकी जब उसने मुझे अपनी बुझती डूबती साँसों की लहरों में अपने सीने से लगाया कि मैं उससे दूर रहा जीवन भर तब मैंने देखा उसने अंतिम यात्रा की तैयारी कर ली है

मैने तब से देखा मेरे ये शब्द नही चिता पर रखी जानी वाली लकडियाँ है

जिसकी ठंडी राख में से मैं दांत ढूंढता उसके पैरमें लगी लोहे की रोड को पाऊंगा और तब से मेरे दोनों घुटने टूट जाएँगे और मैं मध्य रात्री में टूटते तारे की राख अपनी आत्मा पर बरसती पाऊंगा

अभी चूल्हा ठंडा है रसोई में हम मां बेटा उसमें  फूंक मारेंगे तो कटोरदान में तीन दिन पुरानी रोटी फूल जाएगी
अभी उसके गहनों में देवता अपना श्रृंगार करेंगे
अभी उसकी चप्पलो में मेरी बेटी की नीद का पैर है
अभी बीस साल पहले मरा बेटा और चालीस साल पहले लापता उसका भाई उसे थाली परोसने का कहेंगे
अभी
अभी
अभी
अभी
अभी
.......थाली पर बैठे मेरे पिता थाली पर लुढक जाएंगे
अभी
अभी
अभी
अभी
अभी
......पत्नी से बाते करता मैं अँधेरे आंगन में छाती के बल जा गिरूंगा
अभी
अभी
अभी
अभी
अभी
.......नही .....अब कुछ नही 

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