कल रात चाँद इतना नजदीक था कि मेरे शब्द खो गये.
मैं शब्दों को ढूँढने गया तो पीछे मेरे सफेद चादर के बिस्तर पर कोइ आ कर लेटा रहा।
वह कौन था ?
मेरे चादर पर जितनी सलवटे थी उतनी चाँद की देह पर खरोंचे थी .
पर मेरे शब्दों को किसने भरमाया .
जिनकी राख तक नही मिली .
एक बार पहले भी ऐसा मेरे साथ हो चुका है तब भी चाँद पृथ्वी और मेरी मेज की ऍन छाती को छू रहा था.
तब मैने उपन्यास लिखना शुरू किया .
मगर कुछ ही दिनों में वह अधलिखा ....ढह गया, जिसे मैने अवांछित सन्तान या अल्पवयस्क मान विस्मृति के खड्डे में दबा दिया था.
अरसे बाद उसकी आहे मेरी स्मृति को डराने लगी तो मैंने उस उपन्यास की अधूरी देह को ढूंढना शुरू किया .
उसकी राख भी नही मिली .
आज मेरे बिस्तर पर किसी की करवटे और चाँद की देह पर खरोंचे थी।
इतना नजदीक भी मत आना कि सिर्फ जाना ही दीखता रह जाए जिसकी राख भी न मिले .
अभी चाँद फिर आकाश में है ....जैसे उसका कुछ लुट गया हो .
Bahut khoobsurat!! Bahut mukhtalif!
जवाब देंहटाएंbohot sundar!
जवाब देंहटाएंचांद की देह पर खरोंचे थी। बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंNICE WRITTEN.
जवाब देंहटाएंBeautiful..
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