बुधवार, 26 जून 2013

जहर में डुबो तुम्हारे वस्त्रो को मैने ईश्वर को प्रस्तुत किये . उसने समस्त अमृत मेरे पैरो पर बहा दिया .....

चेहरे पर पीली पत्तियों की छाया थी  जिसे छुओ तो तुम्हारा रक्त भी पीला पड़ जाता .
छूने वाला मृत था और जीवित को देख सिसकने में सूखी जड़ो को विचलित कर रहा था. 

एक कोव्वे को श्मशान में जाने से डर लगता था पर उसके लिए जल वहीं रखा जाता. 
मरियल  बिल्ली ज्यादा दिन भेद अपने दांतों में नही रख सकती थी .
अँधेरे में सन्दूक में अनपहने कपड़ो को पहन कोई  खुद को सर्वथा निर्वसन पाता. 
पाजेब के रोमरोम  में कोई  सिहरन खनक भी नही पाती कि  दम तोड़ जाती ....भूत वृक्ष पर वही नंगे पैर खनकते थे. कोई  काजल की डिब्बी में अपनी अंगुली यूं छुआता जैसे पुतली को छू रहा हो और पेड़ पर सांप की पुतली झपक जाती कि  सदा के लिए अनझिप पथरीली हो अपने आंसू में देवता को भोग लेती ...ओह…. यात्रा का यात्रा में गुम हो जाना कितना आवश्यक है .

जहर में डुबो तुम्हारे वस्त्रो को मैने ईश्वर को प्रस्तुत किये .
उसने समस्त अमृत मेरे पैरो पर बहा  दिया .....

अमृत यूं बहा कि अनचखा ही रहा .....
जहर में डूबा भीगा ईश्वर प्रथम कामुक भाव में आकाश के पारदर्शी लोक का अतिक्रमण करना चाहता था। 


   

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत मार्मिक है, अनिरुद्ध

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  2. उसने समस्त अमृत मेरे पैरो पर बहा दिया .....

    अमृत यूं बहा कि अनचखा ही रहा .....ahhhh! jise sehte hue drd lazim ...pr likhna un sthitiyon se guzrne jaisa ....padhna kuchh vaisa hi ...

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  3. छुओ तो तुम्‍हारा रक्‍त भी पीला पड़ जाता। बहुत बढ्यिा

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