अधूरी कविता या अधूरे चित्र की तरह शाम को एक सूखा बरगद याद आता है
जिसके नीचे बिल्ली द्वारा अधखाये कबूतर सा कोई पंख -पंख इधर उधर बिखरता है।
मेरे लिए बादलो में दोड़ते तारो को रोक देने वाले हाथ
पाताल से ओक भर शीतल जल लाने वाले हाथ
अभी केनवास पर एक छाया चाकू सी गिर रही है
जिसके नीचे बिल्ली द्वारा अधखाये कबूतर सा कोई पंख -पंख इधर उधर बिखरता है।
मेरे लिए बादलो में दोड़ते तारो को रोक देने वाले हाथ
पाताल से ओक भर शीतल जल लाने वाले हाथ
अभी केनवास पर एक छाया चाकू सी गिर रही है
बरगद भी और सूखा भी .....ओह ....
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