रविवार, 18 अगस्त 2013

अभी केनवास पर एक छाया चाकू सी गिर रही है

अधूरी कविता या अधूरे चित्र की तरह शाम को एक सूखा बरगद याद आता है
जिसके नीचे बिल्ली द्वारा अधखाये कबूतर सा कोई पंख -पंख इधर उधर बिखरता है।

मेरे लिए बादलो में दोड़ते तारो को रोक देने वाले हाथ
पाताल से ओक भर  शीतल जल लाने वाले हाथ


अभी केनवास पर एक छाया चाकू  सी  गिर रही है



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