रविवार, 11 अगस्त 2013

न भूलने ने बहुत मारा

लगा जब
भूल रहा हूँ सब
तब
न भूलने ने
बहुत मारा

दो दीवारों मध्य
जैसे
ढह गयी हो रात

अपना आप उठाया
और
चीलों के
हवाले
कर
दिया

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