प्रेषक
अनसुने..अनकहे की छाया में संतप्त कुछ..
रविवार, 11 अगस्त 2013
न भूलने ने बहुत मारा
लगा जब
भूल रहा हूँ सब
तब
न भूलने ने
बहुत मारा
दो दीवारों मध्य
जैसे
ढह गयी हो रात
अपना आप उठाया
और
चीलों के
हवाले
कर
दिया
1 टिप्पणी:
Anju
12:17:00 am
दो दीवारों मध्य
जैसे
ढह गयी हो रात ...
मामिक
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दो दीवारों मध्य
जवाब देंहटाएंजैसे
ढह गयी हो रात ...
मामिक