सोमवार, 12 अगस्त 2013

आंसुओं की जगह हो सकती है किरचें

आईने के आजू बाजू 
अन्धेरा जो है 
उसे 
छेड़ो मत 

वह किन्ही चेहरों का 
छूटा स्मरण है 

और जो दीखता है 
वह  
दीखने का 
सूना आवाहन 

तुम जहां हो 
वहीं धंसे रहो 
वहीं से आईने का झरना 
फूट पडेगा 

अभी अभी एक छाया गुजरी 
बीचोबीच कटी 

रक्त के धब्बे कवि के चेहरे पर गिरे 

जब सब सो जायेंगे बिस्तरों 
कब्रों में 
एक कवि
स्याह आसमान में 
किन्ही पलको को चूमेगा 
और 
उसके चेहरे पर आंसुओं की जगह 
हो सकती है 
किरचें 

ठंडी और तीखी 


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