शनिवार, 28 सितंबर 2013

सिगरेट के धुंए में एक चेहरा था जो मेरे चेहरे को चूम रहा था .

 आसमान में बादल थे तब कोई चाँद की देह पर से त्वचा हटा रहा था.
बूंदे अँधेरे में पत्तों और पंखो पर गिर रही थी .
मिट्टी कलर के कपड़े पहने कोई अपने कमरे में भीग रहा था जिसे याद कर कोई पुरानी इमारत की ढहती सीढ़ियों पर बैठा सूखता झर रहा था .
फिर अचानक किसी ने पलके खोली तो पाया किसी की पलके आंसुओं में भीगी है , उस डबडब में किसी के ललाट पर कोई हाथ था.
बाजुओं से किसी के फिसलने का स्मरण कंठ में घुट रहा था और पसलियाँ सूखे तिनको के घर सी दरक रही थी .
तब एक पीली दीवार पर दो छायाएँ खुद के करीब आने का सपना देख रही थी  .
अभी उस जगह एक कुएँ में कोई उतर रहा है जिसे पीछे से आवाज देने वाला आज मौन है .

एक पीली चोंच वाली चिड़िया पीपल के झरते पत्ते को लिए दूर देश की और देख रही थी .
किसी की पीठ पर यह सिहरन कैसी .
कंधे पर यह चिन्ह कैसा .

सिगरेट के धुंए में एक चेहरा था जो मेरे चेहरे को चूम रहा था .

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