शुक्रवार, 20 सितंबर 2013

हारमोनियम में से निकलते सांप ने कहा मैने एक भी सुर ऐसा नही छोड़ा जिसका गला और पसलियाँ न मरोड़ दी हो।

सभी शुभ काम जिन श्राद्ध के दिनों में वर्जित है उन्ही दिनों के शुरू में ही मै अपने वादे  अनुसार तुम्हारा जी दुखाने आ गया हूँ।
क्या मेरा भोग मेरी पुकार सुन  मेरी छत पर उतरोगे, मेरे शब्दों को चुगोगे।
मै तुम्हारे जाने के बाद कोई श्राद्ध नही करूंगा ये कह तो दिया था मैने, तुम्हारे सीने पर अपने शब्दों के सांप छोड़ तो दिए थे मैने।
मेरे पिता मेरी माँ  मेरे मृत मित्र मेरे जीवित मृत मित्र तुम्हारा जीवित मृत मै तुम्हारी यादो की पसलियों को उलट पुलट रहा हूँ तुम मेरी।
अभी जब मेरा खो चुका अपना अधूरा उपन्यास उस मित्र की दराज में मिला जिसके लिए मै मर चुका हूँ उसे मैने  मरण में खिलखिलाते देखा तो पाया चिता की राख उड़ रही है हमारे चेहरो पर।

वह जो आधी रात बर्फ़ीली रात स्वर्ग का द्वार देख लौट रहा था अपने कमरे के दरवाजे पर किसी सूखी डाल  सा गिरा पडा मिला।
उसकी खोपड़ी खुल चुकी थी और उसकी बाहर निकल हंसती पुतलियों में स्वर्ग की सीढ़ियों के टुकड़े थे उसकी मवाद से भरी जांघ में रात में खुद उसी के द्वारा लगाया पांचवा आख़िरी इंजेक्शन था।  उसके दाहिने हाथ की एक अंगुली यूँ सीधी तनी थी जैसे अभी अभी सूरज को लगभग छू चुकी हो।
रसोई में ठंड में ठिठुरती बिल्ली के पंजो में एक चूहा सहमा सा लेटा था जिनकी तरफ उसकी गर्दन मुडी थी।

अभी श्राद्ध के दिन ये लापता हुआ लिखा मिला और तुम लापता हो गये. मरना और लापता होना इन दोनों ने मुझे मैने  इन्हें हमने तुम्हे जीवन भर मारा है। शुभ काम मृत को और मारना है अंतिम दम तक। यही श्राद्ध कर्म है। ताकी किसी दिन कोई हमें भी अधमरा न छोड़ दे।

अब रोज सुबह अपने शब्दों के विलाप और कोहराम और बददुआ लिए तुम्हे कोसूँगा और तुम आकाश में किसी काली रेखा से कांपोगे।

वह अपने कमरे में बिस्तर पर सपने देख रहा है कि  कोई उसे सपने देखते देख रहा है।
नीचे गुसलखाने में कौन सिसक रहा है ?
तकिये के नीचे दबा रखी सूखी अदरक किस ने खाई ?
हारमोनियम में से निकलते सांप ने कहा मैने एक भी सुर ऐसा नही छोड़ा जिसका गला और पसलियाँ न मरोड़ दी हो।
सब कुछ ठीक है यह देख नामुरादों ने कहा अब कुछ नही बचेगा।

[बरसों से अधूरा उपन्यास जो श्राद्ध के दिनों में दोबारा चला है ]

3 टिप्‍पणियां:

  1. सबसे पहले बधाई..आपको वो अधूरा ..जो छूटा था कहीं ...या कहें कि कर्मफल के भोग की लंबी पीड़ा के बाद मिल गया ..../गुम हुए वक्त और मिलने के वक्त के बीच में ..जरूर कुछ ऐसा रहा होगा कि उसका ना मिलना ..आपके और इस उपन्यास के लिए जो उचित ही रहा हो .../ श्राद्ध के दिन आशीर्वाद के दिन होते हैं ...जैसे देवता वरदान देते हैं ..वैसे ही पितर भी ..इसे उनका आशीर्वाद समझ ...खोने पाने को भूल लिखना शुरू कीजिये ../

    बहुत मार्मिक ....मरना और लापता होना इन दोनों ने मुझे मैने इन्हें हमने तुम्हे जीवन भर मारा है। ...शुभकामनाएं

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  2. सुन्दर रचनाएँ

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  3. क्यूँ मगर श्राद्ध में मरे हुवे लोगों से पुन: मिलना
    क्यूँ??

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