पसलियों को रात
अंधेरी नीद के
मुरझाते सपने ने
रिसती चट्टान सा देखा
पुतलियो की जगह
राख के
ढूह
होटों पर ठंडा धुआँ
अंधे
सांप सा
आत्मा जैसा कुछ था
शायद
जहाँ पीले पत्ते पर
कीड़े सी
धूप
अंधेरी नीद के
मुरझाते सपने ने
रिसती चट्टान सा देखा
पुतलियो की जगह
राख के
ढूह
होटों पर ठंडा धुआँ
अंधे
सांप सा
आत्मा जैसा कुछ था
शायद
जहाँ पीले पत्ते पर
कीड़े सी
धूप
बेहतरीन!!!
जवाब देंहटाएंअनु
sundar rachna
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