मंगलवार, 8 अक्तूबर 2013

पीले पत्ते पर कीड़े सी धूप

पसलियों को रात
अंधेरी नीद के
मुरझाते सपने ने
रिसती चट्टान सा देखा

पुतलियो की जगह
राख के
ढूह

होटों पर ठंडा धुआँ
अंधे
सांप सा

आत्मा जैसा कुछ था
शायद

जहाँ पीले पत्ते पर
कीड़े सी
धूप


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