गुरुवार, 18 जुलाई 2013

उसकी आवाज कोई उतरी हुई केंचुली हो

अभी जब चाँद  को काला बिल्ला आधा नोच गया
उसी दरम्यान किसी ने सूनी गली में अपने घर का दरवाजा खोला और अंधी आँखों से देखते कहा
किससे  मिलना है
कौन हो
कहाँ से आए हो
क्यों आए हो
किसने भेजा

उसी वक्त किसी दूसरी गली की बंद खिड़की से किसी ने
किसी का चेहरा
फेंका

उसी वक्त किसी की छाती पर
टिका चेहरा
गीली राख
में तब्दील हुआ

सैकड़ो टूटे तारो का हुजूम उस छाती में से गुजर गया किसी ने रोका नही

किसी के बालो में ढका चेहरा
तब देख रहा था
अन्धेरा कितना चमकीला और सुकून देता है

बरसो पुरानी दीवार के बिखरते चेहरे पर तब दो साए अपने हाथ यूं रखते है जैसे वे पक्षी हो
और इस दीवार को अपनी उड़ान में
ले उड़ेंगे

सीढ़ियों पर उन सायो का राग था

तब फिर किसी ने यूं पूछा जैसे उसकी आवाज कोई  उतरी हुई केंचुली हो

किससे  मिलना है
क्यो…
कौन
तुम

चाँद अपना नुचा हुआ चेहरा लिए मेरी आँखों में झाँक रहा
या
मै
उसकी 

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