मृत फोन पर सूखा बादल बरसता और बरसो पहले की सिसकी हरी हो जाती
जामुनी इन्तजार में नीले का स्फटिक बदन हवा में कसमसाता
तब एक मोर किसी सूने घर की छत पर अपने सारे पंख त्याग देता ऒर अपने पैरों को चबाता
अन्धेरे कमरे में
किसी की कोहनी पर
बेसुध लेटा मैं
सपने में
उसके
कान में
सपने
का
भेद
फूंकता
अभी कोई तारा नही टूट रहा
अभी
आकाश
टूट
बिखर रहा
अभी आईने में
कोई छाया
मेरा आलिंगन करती
सिसक रही
अभी गुमनामी की रेत में
मेरी बदहवासी को
नमी का छल
चबा रहा
कहाँ हो तुम
यह कहने में कहाँ हूँ मैं यह देखता शव का एकांत हूँ
जामुनी इन्तजार में नीले का स्फटिक बदन हवा में कसमसाता
तब एक मोर किसी सूने घर की छत पर अपने सारे पंख त्याग देता ऒर अपने पैरों को चबाता
अन्धेरे कमरे में
किसी की कोहनी पर
बेसुध लेटा मैं
सपने में
उसके
कान में
सपने
का
भेद
फूंकता
अभी कोई तारा नही टूट रहा
अभी
आकाश
टूट
बिखर रहा
अभी आईने में
कोई छाया
मेरा आलिंगन करती
सिसक रही
अभी गुमनामी की रेत में
मेरी बदहवासी को
नमी का छल
चबा रहा
कहाँ हो तुम
यह कहने में कहाँ हूँ मैं यह देखता शव का एकांत हूँ
अभी कोई तारा नही टूट रहा
जवाब देंहटाएंअभी
आकाश
टूट
बिखर रहा....
कहाँ हो तुम
यह कहने में कहाँ हूँ मैं यह देखता शव का एकांत हूँ
अह! तारे का टूटना ..मुराद का पाना ...बिखरता जब आकाश ...टूटती धरा ...कौन .किससे कहे ..कहाँ हो तुम ...नही रहता कोई जहां ....तुम या मैं ..नही वहाँ ..बस हो जाता ..एका अंत ..देह का अदेह .../ अदेह का देह होना ..उफ्फ्फ्फ्फ़ ! मन की परतों के भीतर पसरता एकांत ....