मंगलवार, 23 जुलाई 2013

रात किसी के तकिये पर था उसे जागना

हथेली पर किसी की
रेखाओं पर
पीपल का पत्ता

जिस पर एक बूँद
ठिठकी
चाँद उसी में
उगना था

रात किसी के तकिये पर
था उसे जागना

रात ही किसी की देह पर
चहल कदमी
थी होनी

किन्ही हथेलियों पर
रखी जानी थी
अज्ञात अदृश्य
हथेलियाँ

जिन्हें फिर
अपने अपने चेहरों
पर रख लेनी थी

तलवार की धार पर सपनो  को
था आना 

1 टिप्पणी:

  1. किन्ही हथेलियों पर
    रखी जानी थी
    अज्ञात अदृश्य
    हथेलियाँ

    जिन्हें फिर
    अपने अपने चेहरों
    पर रख लेनी थी

    तलवार की धार पर सपनो को
    था आना

    खूबसूरत .....अनुपम सौंदर्य से सराबोर .....आकाश के असीम पर अमावस के बाद जैसे पूर्णिमा का पदार्पण ....

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