मेरी हंसी एक जर्जर दरवाजे की दरार से आती विलाप की घुटी घुटी यात्रा है
मुझे अभी रात छत पर उमस में किसी ने कहा कि तुम बहुत ज्यादा हो जाते हो अब सारी उम्र यूं ही माँ की छाती लगे रहोगे क्या.
मेमने के मुह से दूध भरा स्तन जैसे कोई जबरन छुड़ाए .
मेरी पसलियों को तोड़ती तुमने कहा अब तुम्हे खुद को ज्यादा खर्च नही करना चाहिए
मैने देखा मेरे कपड़े या तो बहुत ज्यादा ढीले किसी अन्य के है या मेरी खाट किसी की चिता है
मेरी ढोलकी फट चुकी है जिसमे बैठ मुझे ननिहाल जाना था
मुझे पीटने वाले पिता अभी मेरे उजबक बने रह जाने पर सीली लकडियो में सिसक रहे हैं
मेरे मित्र बीयर पीते झाग मेरे बालो पर डालते मेरे कानो को एश ट्रे बना रहे है
मेरे लिखे को मेरी अनपढ़ माँ मेरी सबसे बड़ी पूंजी समझ सड़क पर से बुहारती कुचल जाती है
मेरी कटी जीभ में से रक्त की आकाश गंगा फूटती है
मैं अपना लिंग परिवर्तन करते देखता हूँ ईश्वर अपनी जगह से नदारद है .
मेरे घर में मेरी विगत हंसी और बातो के सूखे कुए हैं जिनमे मेरी गीली परछाई चीखती है
मेरी ढोलकी फट चुकी है जिसमे बैठ मुझे ननिहाल जाना था
जवाब देंहटाएंमुझे पीटने वाले पिता अभी मेरे उजबक बने रह जाने पर सीली लकडियो में सिसक रहे हैं ..
bahut marmik kavita hai..
बहुत अच्छी कविता...मन को छू गई...जिनमे मेरी परछाई चीखती है...आह निकल गई अंत तक आते आते..
जवाब देंहटाएंगीताश्री
आह ..!
जवाब देंहटाएंइतना मार्मिक .....एक एक पंक्ति किसी गहरे कुएं में धकेलती .......और एक सिहरन ..जो आत्मा को छूने पर ही सिहरती है ...उफ्फ्फ्फ्फ्फ़ ...एक सिसकी जो गले में घुट गई ....
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