जिस टेबल पर मैं झुका था उस टेबल पर मै लेटा था.
हमारे बीच आत्मा किसी चाकू सी .
मृत चीजे ही दूसरो को मारती है.
फिर मैं उठूंगा तो मेरी छाया कतरनों में मेरा गला घोंटने लगेगी.
जिस कागज को घूर रहा हूँ वह मुझे अपना अंधापन देने को आतुर है.
तुम्हारी आवाज अभी सुनाई दी जब बगल के तारे ने बगल के तारे को टूट मुंह के बल गिरते देखा.
स्मृति एक कपाल क्रिया है जिसे विस्मृति प्रतिपल किया करती है.
हमारे बीच आत्मा किसी चाकू सी .
मृत चीजे ही दूसरो को मारती है.
फिर मैं उठूंगा तो मेरी छाया कतरनों में मेरा गला घोंटने लगेगी.
जिस कागज को घूर रहा हूँ वह मुझे अपना अंधापन देने को आतुर है.
तुम्हारी आवाज अभी सुनाई दी जब बगल के तारे ने बगल के तारे को टूट मुंह के बल गिरते देखा.
स्मृति एक कपाल क्रिया है जिसे विस्मृति प्रतिपल किया करती है.
छाया की कतरन ....कागज का अंधापन ....तारे का टूट कर गिरना .....मुँह के बल .....आत्मा का चाकू सा होना .....उफ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ़............सोच का ये केनवास कैसे उकेर लेता है इन ....रंगों की रेखाओं को ....
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