रात अपना सर उठा रही है और दिल का सूर्य डूब रहा
ठंडे अंगारे ठिठुरते कनपटियो में धंस रहे
कोइ पदचाप नही
विलाप
में
कोई
घुट
रहा
मौसम
की
उमस
हमारी
देह
के
स्पंदन
को
खा
रही
कल जो सूर्य उगेगा
लुटा
पिटा,
अंधा,
वृद्ध
वह समस्त हरीतिमा पर नीली आँखों का पथराया स्वप्न होगा
ठंडे अंगारे ठिठुरते कनपटियो में धंस रहे
कोइ पदचाप नही
विलाप
में
कोई
घुट
रहा
मौसम
की
उमस
हमारी
देह
के
स्पंदन
को
खा
रही
कल जो सूर्य उगेगा
लुटा
पिटा,
अंधा,
वृद्ध
वह समस्त हरीतिमा पर नीली आँखों का पथराया स्वप्न होगा
सुन्दर..
जवाब देंहटाएंkhoob..
जवाब देंहटाएंदर्द ...
जवाब देंहटाएंनही होता
कोई शब्द
किया जाये
जिससे
बयाँ
........बस इतना ही
इस भाव पर ...और कुछ नही .