आईने को देखता
देखता हूँ
उस से लिपट गया
मेरा मौन
झील सा नही
चट्टान सा
हो
जिसमे मैं
जीवाश्म सा
पाया
जाऊँ
अभी तुम्हारे
द्वार पर मेरी छाया
ताजा टूटे
पत्ते सी
और बिस्तर पर किसी के डूब मरने की छपाक
देखता हूँ
उस से लिपट गया
मेरा मौन
झील सा नही
चट्टान सा
हो
जिसमे मैं
जीवाश्म सा
पाया
जाऊँ
अभी तुम्हारे
द्वार पर मेरी छाया
ताजा टूटे
पत्ते सी
और बिस्तर पर किसी के डूब मरने की छपाक
bahut umda kvita hai.. sashakt bimb
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